Coffee Table Book: “Mount Everest”

Experience The Journey

This photographic travelogue depicts the Himalayan journey of an Indian Administrative Services (IAS) officer, Ravindra Kumar, including his summit of Mt Everest twice through two different routes. It transcends you to many fascinating locations of the Himalayas in Sikkim, Nepal, Ladakh and Tibet, travelled and explored by Kumar. Further, it provides glimpses of picturesque mountains and stunning landscapes along with the rich biodiversity and cultural vibrancy caught along the routes. Depicted through captivating images, accurate route maps and crisp descriptions laid out in a story-like manner, it transports you to places of ethereal beauty.

manybooks-newAs a mountaineer, Kumar’s adventures have spanned over a decade, summiting Mt Everest twice, which is an immensely inspirational achievement. This carefully curated gem also showcases the meticulous planning that goes in while engaging in such a risky adventure. It guides aspiring mountaineers to visualise their climb, fathom the difficulties and mentally prepare themselves for the ascent, which demands extreme physical fitness and   unfortunately also ends up claiming many lives every year.

Moreover, it provides laypersons with an easy option to divert, unwind, relax and heal their mind by flipping through the soothing and calming scenes of the Himalayas, beautifully laid out throughout this magnificently crafted coffee table book. A painstaking work of stunning photographs and fearless narration, Mount Everest will leave a deep therapeutic effect on the human mind and body.

Book : “Many Everests”

An Inspiring Journey of Transforming Dreams into Reality

‘Many Everests: An Inspiring Journey of Transforming Dreams into Reality’ is a thought provoking book, which has tremendous potential to change the way you look at your life. It reveals to you the hidden potential lying idle in you, using what you can fulfill your long cherished dreams, what have been unfulfilled over the years. The book gives you a new approach to life, a new way to make and live a happy, successful and peaceful life. It has been written with the aim to spread the key to success amongst the common people and to ignite the minds of thousands of hopeless people especially youth and students.

manybooks-newAlthough the book depicts the true story of a boy, who, in spite of coming from one of the lowest strata of society and in spite of facing multiple obstructions & hindrances in life, sets up many milestones in the short span of life like clearing IIT Entrance Examination, clearing Civil Services Examination (IAS Examination), climbing Mt. Everest, improving health and wealth status over a short span of time and many more, ranging from the extreme mental activity to extreme physical activity; but the major focus of the book is the well-tried and tested trick to success, what author calls ‘Advanced Positive Visualization’. The beauty of this book is lies in the simple way, in which author has scientifically explained about the reason behind the effectiveness of this new technique by connecting the dots of old as well as modern scientific researches including Einstein’s theory of relativity and yogic research, which is easily understandable by the common people.

Author has further explained how common people can take advantage of this technique by showing its effectiveness in various ups and downs in his own life and by analyzing the positive effect of technique in various ups and downs of life.

To understand the technique deeply and reap its benefit, you are suggested to read the whole book.

Book : “एवरेस्ट”

सपनों की उड़ान: सिफ़र से शिखर तक

माउण्ट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले भारत के पहले आईएएस अधिकारी केरूप में लेखक ने प्रस्तुत पुस्तक ‘एवरेस्ट – सपनों की उड़ान: सिफ़र से शिखर तक’ के माध्यम से एवरेस्ट को एक भौतिक बाधा की सीमा सेबाहर जीवन की समस्याओं के प्रतीक के रूप में चित्रित किया है।इसके साथ ही ‘अग्रवर्ती सकारात्मक मानसिक चित्रण’ नाम से वर्णितसफलता की अपनी कुँजी को समाज के साथ साझा करते हुए जीवनके विभिन्न एवरेस्ट को फतह करने के अद्भुत तरीके को समझाया है ।

manybooks-newसफलता की उपर्युक्त कुँजी का प्रयोग पहले लेखक ने स्वयं किया, औरअपने प्रथम प्रयास में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में चयन होने, वर्षों तकसमुद्री जहाज पर नौकरी करने के बाद सिविल सेवा परीक्षा में चयनितहोकर भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी बनने और तत्पश्चात, प्रथमप्रयास में ही माउण्ट एवरेस्ट जैसी दुर्गम चोटी पर फतह करने आदिजैसी कई जीवन्त उपलब्धियां हासिल की। इस तरह इसे अच्छी तरहसे परखने और आजमाने के पश्चात आपसे साझा करते हुए लेखक नेइसके माध्यम से आपके अन्दर अप्रयुक्त पड़ी अमूल्य कुदरती शक्तिको आपके सामने प्रस्तुत किया है लेखक का तथ्‍य इस बात पर आधारित है कि हमारा म‍स्तिष्‍क किसीअन्‍य संवेदी धारणा जैसे बोलना, सुनना, गंध, स्‍पर्श इत्‍यादि से पहलेकिसी भी चीज की तस्‍वीर को ग्रहण करता है। हालांकि यह हमारेदैनिक जीवन में रोजाना होता रहता है परंतु फिर भी हम इसकाएहसास नहीं करते हैं।

लेखक ने न केवल रोजमर्रा की जिंदगी में किये गए अपने अवलोकनका उल्‍लेख किया है, बल्कि पुरानी और नवीनतम वैज्ञानिकअनुसंधानों के बिन्‍दुओं को जोड़कर इसे वैज्ञानिक ढंग से सरलतमअंदाज में समझाने की कोशिश की है। इसमें आइंस्‍टीन के सापेक्षतासिद्धांत, प्राच्‍य योगियों द्वारा की गयी खोज, आधुनिक विश्‍वविद्यालयजैसे हार्वर्ड मेडिकल स्‍कूल, लेनिनग्राद सैन्‍य प्रयोगशाला आदि द्वारामानव मस्तिष्‍क पर किए गए प्रयोग शामिल हैं।

आमलोगों की जिंदगी में इस तकनीक के चमत्कारी प्रभाव को अपनेजीवन के उदाहरण के माध्यम से प्रदर्शित करते हुए लेखक ने पाठकोंको बताया है कि एक निर्धन पृष्‍ठभूमि से आने और संघर्षपूर्ण जीवनके बावजूद किस तरह इस तकनीक का उपयोग कर अल्‍पावधि मेंसफलता के कई प्रतिमान गढ़े जा सकते हैं।

कविता पुस्तक: ‘‘आंतरिक अंतरिक्ष और स्वप्न यात्रा’’

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इस कविता-संग्रह की कविताएं आधुनिकता के दुष्प्रभाव व वर्तमान समय की चुनौतियों से संबंधित कविताएं हैं। मानव और मानव सभ्यता इन कविताओं के मूल है तथा कवि के भौगोलिक परिदृश्य में विश्व-समस्या विराजमान है।

कविता पुस्तक: ‘‘ललक’’

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एक ऐसा कविता-संग्रह जो आपको सपने देखने के लिए उत्साहित करने के साथ-साथ उन सपनों को पूरा करने लिए भी आपमें विश्वास भरता है ।

  • गंगा के मैदानी इलाके में एक किसान परिवार में जन्मा १५ साल का एक दुबला-पतला व शारीरिक रूप से बेहद कमजोर बच्चा अपने बालमन की कोरी ख्वाहिश को कविता के रूप में कागज पर उतारकर अपने जीवन के संघर्ष में आगे बढ़ जाता है।
  • शायद उस समय उस मासूम बालक को नहीं पता था कि उसकी मसूरी में घूमने और हिमगिरी की चोटी पर तिरंगा फहराने की ललक भविष्य में कभी कागज के पन्नों से बाहर निकलकर यथार्थ में परिणत हो जाएगी।
  • आप इसे आश्चर्य कहें, या महज इत्तफाक कहें या अवचेतन मन की दिव्य शक्ति कहें (जिसके बारे में कवि द्वारा एक अन्य किताब ‘एवरेस्ट- सपनों की उड़ान’ में विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है) या आप जो भी सोचें या विश्वास करें, उसके लिए आप स्वतंत्र हैं, परन्तु सच तो यह है कि उस बालक की ललक लगभग डेढ़ दशक बाद पूरी हुई, जब उसने भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन के बाद प्रशिक्षण के दौरान मसूरी की सैर भी की और उसके बाद हिमगिरी की चोटी एवरेस्ट चढ़कर भारत का तिरंगा भी फहराया।
  • असली जीवन में उसकी ललक पूरी होने के बाद भी पुराने कागज पर लिखी उस कविता की ललक असल मायने में तब पूरी हुई, जब लगभग ढाई दशक बाद उसकी नजर उस धूल से लिपटी पुरानी पुस्तिका पर पड़ी जिसमें वह बचपन में कविता लिखा करता था, जिसे अब आपके साथ इस पुस्तक ‘ललक’ के माध्यम से इस आशा के साथ साझा किया जा रहा है कि आप भी जीवन में सपने देखना ना छोड़ें और अपने पर विश्वास रखें कि वो सपना भविष्य में कभी भी वास्तविकता में बदल सकता है ।
“जब हमारे अंतस से बाह्य चीजें मेल नहीं खातीं, तब मन और मस्तिष्क में विक्षोभ और विद्रोह स्वाभाविक है। युवावस्था में यह स्थिति और भी तीव्रतम होती है। श्री रविन्द्र कुमार के कविता संकलन ‘ललक’ की सभी कविताएँ इसी तीव्रतम अनुभूति की अभिव्यक्ति हैं। रविन्द्र जी की कविताएँ सामाजिक परिवेश की कविताएँ हैं। उनकी कविता में मानवीय संवेदना, समाज की असमानता, वर्गभेद, पूँजीवाद व बाजारवाद के शोषण तथा अंधपरंपराओं एवं कुरीतियों के दुष्परिणाम आदि पहलू प्रभावशाली तरीके से अभिव्यक्त हुए हैं। इसलिए ये कविताएँ पाठक को जागरूक करती हैं तथा उन्हें एक जिम्मेदार दृष्टि सौंपती हैं। संग्रह की शीर्षक कविता ‘ललक’ इस मायने में अति विशिष्ट कविता है क्योंकि यह कवि द्वारा बचपन में देखे गए स्वप्नों एवं सम्यक संकल्पों का लिखित दस्तावेज है।’’

 

“इस कविता में कवि रविन्द्र अपनी तरुणावस्था में (सन् 1997 में) लिखते हैं—‘‘मोटर गाडि़यों से करने की, मसूरी की सैर/ललक मुझे है इसकी/पर चढ़कर हिमगिरि की चोटी पर/ ललक है हिंद का तिरंगा फहराऊँ।’’ आज जब दिसंबर 2020 में मैं रविन्द्रजी की इस कविता की पांडुलिपि पढ़ रहा हूँ, तो मुझे कवि की यह कविता उनके द्वारा करीब ढाई दशक पहले अपने भविष्य की उपलब्धियों के बारे में की गई भविष्यवाणी लगती है। रविन्द्र जी विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला माउंट एवरेस्ट पर दो बार चढ़कर राष्ट्रध्वज फहरा चुके हैं। इस प्रकार, कवि की काव्य-पंक्तियाँ वास्तविक रूप से मूर्त हुई हैं।’’
—डॉ. अश्वघोष (वरिष्ठ कवि)

कविता पुस्तक: ‘‘नई आँखें’’

श्री रविन्द्र कुमार के द्वारा प्रणीत ‘नई आँखें’ कविता संग्रह की कविताएंॅ काव्य के संसार में अपना एक पृथक स्थान निर्मित करती हैं और विभिन्न कोणों से तथा अपनी काव्यमयी अनुभूतियों से मस्तिष्क की अनेक खिड़कियांॅ खोल देती हैं। सद्विचारों के लिए भी स्वच्छ और ताजी हवा का आना आवश्यक है। ये कविताएंॅ भी स्वच्छ और ताजी हवा की तरह साहित्य को एक नया रूप देने में सक्षम हैं। बिम्बों-प्रतीकों का हारा हुआ विधान इन कविताओं में एक नया कलेवर लेकर आया है तथा ये कविताएॅ एक नए क्षितिज का द्वार खोलती हैं।

इन कविताओं में कवि एक नई भाव-भंगिमा से संसार को देखने की दृष्टि सृजित करता है। प्रस्तुत संग्रह की कविताएॅं संसार की गतिमयता को अत्यंत सूक्ष्मता से अभिव्यंजित करती हैं। एक आलोकमयी दृष्टि का प्रक्षेपण करते हुए कवि यथार्थ के दृश्यों का उद्घाटन करता है। एक सामाजिक यथार्थ जो बहुधा दर्शन से समझा जा सकता है, उसे कवि ने कविता के माध्यम से समझाने की चेष्टा की है। बहुत कुछ चिरंतन सत्य की परिभाषा में लिखे हुए शब्द समय से पार देखने को विवश करते हैं। अदृश्य को देखने की जिजीविषा का एक अनूठा प्रयास इन कविताओं में है। स्वच्छ प्रकृति की स्वच्छ मानसिकता की इस काव्यमयी सृष्टि के लिए कवि श्री रविन्द्र कुमार जी की इन कविताओं का स्वागत होना ही चाहिए।

-डा0 अनूप सिंह

कविता पुस्तक: ‘‘इक्कीसवीं सीढ़ी’’

‘‘रविन्द्र कुमार जी की कविताओं में जीवन के विविध रंग मिले हुए हैं। ‘इक्कीसवीं सीढ़ी’, ‘चाौराहा’, ‘जड़ से जूझना, लहर से नहीं’, ‘ये चीख’, ‘सियार से भेड़ तक’, ‘सीमित-जीवन’, ‘मन’, ‘बढ़ते चंगुल’ तथा ‘धरती की कोख में’ आदि कविताएँ इन्हीं विविध रंगों की बानगी हैं।’’
‘‘कवि के पास जीवन का व्यापक अनुभव है और सच पूछा जाए तो कविता की व्यापकता जीवन की व्यापकता के समानान्तर ही चलती है और चलनी भी चाहिए। रविन्द्र कुमार जी की कविताएँ किसी वाद या विचारधारा की गुलाम न होकर एक शुद्ध झरने की तरह हैं।’’
‘‘संग्रह की कविता ‘एक सपना’ में कवि के शब्द-‘‘एक सपना/जो मुझे बार-बार कचोटता/मेरे मन को मरोड़ता/जल की सतह के ऊपर नीचे डुबोता’’ और‘‘कोई ध्वनि घनघना कर धॅंुए-सा देता/और अंत में/एक हल्की/छोटी-सी ज्वाला दे/खत्म हो जाता/…. कितना अच्छा होता/ जो तू रहता अभी तक!’’ -देश के पूर्व राष्ट्रपति डाॅ0 अब्दुल कलाम जी के उन शब्दों की याद दिलाती है कि सपने वे नहीं होते जो सोते हुए देखते हैं, सपने वह होते हैं जो आपको सोने नहीं देते। इसलिए कवि हमेशा सपनों के साथ रहना चाहता है। पाठक को थोड़ा गहराई में जाकर ही ऐसी कविताओ का भावार्थ समझ में आएगा। यानि जीवन की जटिलताओं के बीच भी उम्मीद की कुछ हरियाली सदा मौजूद रहती है और जीवन में कुछ हासिल करने का, सपनों को पाने का यही रास्ता है। व्यक्ति के लिए भी, समाज के लिए भी और देश के लिए भी।’’
प्रेमपाल शर्मा
पूर्व संयुक्त सचिव, रेल मंत्रालय, नई दिल्ली

कविता पुस्तक: ‘‘दृष्टि’’

चेतना का उजाला, चिंतन की चिंगारियां और संवेदना के सागर में उभरी अनुभूतियों की लहरें यदि पाठक के मर्म को स्पर्श कर लें तो कवि का कर्म अपनी साधना पूरी कर लेता है। उसका सृजन अपने लक्ष्य को पा लेता है। इस कसौटी पर यह गद्य काव्य संग्रह खरा और चौकस है। भौतिक सुख-सुविधाओं को बटोरने की हवस में व्यक्ति अनैतिकता के पहाड़ पर चढ़ता जा रहा है। उसकी नैतिक जमीन कितनी धसकती जा रही है, इसकी उसे खबर नहीं है। यह गद्य काव्य संग्रह इन्हीं स्थितियों का यथार्थ दस्तावेज है। ‘ईमानदार’, ‘कर्तव्य परायणता’, ‘मुस्कुराना’, ‘दौलत’, ‘समय’, ‘धोखा,’ ‘अविश्वास’ ‘दो बीघा जमीन’ आदि कविताओं में इन्हीं मनोदशाओं के समवेत स्वर अंकित हैं। पति-पत्नी के परस्पर अहं से परिवार की सुख-शांति का बेड़ा गर्क हो रहा है परंतु परिवार के खेवनहार को इसकी खबर नहीं है। इस पारिवारिक विडंबना को ‘परिवार’ कविता बड़ी बेबाकी से बयां करती है। माता-पिता की तनातनी का शिकार हो रहा बच्चा बेबसी और लाचारी में डूबता उतराता कहता है कि  ‘आप दोनों इंसान हो या कसाई एक बकरी की तरह खिला पिलाकर हर रोज मेरी खुशियां हलाल करते हो।’ यह मार्मिक कथन पारिवारिक नासमझी पर करारा तमाचा जड़ता है। 
घर, परिवार की आबोहवा में कितना जहर घुलता जा रहा है! कवि संदेश दे रहा है कि यदि भावना और संवेदना की जड़ों में अहम का मट्ठा डाला जाएगा तो पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों का पौधा हरा-भरा कैसे रहेगा? 
संग्रह की सभी कविताएं कर्तव्य,दायित्व और नैतिक आचरण की ओर पाठकों को उन्मुख करती हैं। इस गद्य कविता संग्रह की विशेषता यह है कि कवि ने व्यक्ति व समाज से सीधा संवाद किया है। कबीर दास जी ने कहा था कि ‘कबीरा कहै आंखन देखी’। इस संग्रह के कविवर रविंद्र कुमार कह रहे हैं ‘साँची, साँची –समाज बीती। ‘ऐसी साफगोई और सपाट बयानी के लिए रविंद्र कुमार को जितनी भी बधाई दी जाए, कम है।
                                                                                                                                                                                                                                               डॉ उदय त्रिपाठी

कविता पुस्तक: ‘‘अँखियन देखी’’

‘अँखियन देखी’ आपको समर्पित करते हुए मन आल्हादित है। पूर्व में प्रकाशित चार कविता संग्रह मेरे बाल्यकाल व किशोरावस्था के दौरान मन में विचरण करने वाले विचारों, अनुभवों व सपनों की अभिव्यक्तियाँ थीं; किंतु इस पुस्तक में वर्तमान समय के समाज, व्यक्ति व वैचारिक द्वंद्व के मध्य में बुनी गई कविताओं का संग्रह है।
‘अँखियन देखी’ में संकलित कविताएँ जनपद झाँसी में तैनाती के दौरान अर्जित अनुभवों का काव्य रूप है। समाज के पीड़ित, वंचित व दुखी वर्ग की परेशानियों के निराकरण के दौरान जब मेरा मन व्यथित हुआ, तब यह व्यथा कविता बनकर लेखनी से निर्गत हुई और इस पुस्तक का सृजन हुआ। इसमें कहीं हर्ष ध्वनि है, तो कहीं हृदय की पीड़ा भी, किसी के आने की उम्मीद है, तो किसी के विरह की पीड़ा भी। कुछ अनकही बातें हैं, तो कुछ अव्यक्त जज़्बात भी। कभी जीवन के आनंद के गीत हैं, तो कहीं रुदन का हृदय विदारक स्वर भी। कुछ कविताएँ जीवन की प्रेरणा का राग सुनाती हैं तो किसी में उसी प्रेरणा की खोज भी है। किसी कविता में मैंने खुद को खोजा है तो किसी में खुद को पाया भी है। ये कविताएँ पारंपरिक होते हुए भी नवीनता व आधुनिकता का आवरण ओढ़े हुए हैं।
अंत में इतना ही कहूँगा कि जो मैंने देखा, उसे शब्दों में उकेरकर ‘अँखियन देखी’ के नाम से पाठकों को समर्पित किया है। आशा है कि इस पुस्तक की कविताएँ पाठकों के मर्म को स्पर्श कर उन्हें समाज का सिंहावलोकन करने में सहायक होंगीं। 
                                                                                                                                                                                                                                                 -रविन्द्र कुमार

कविता पुस्तक: ‘‘दूसरी जंग’’

कवि रविन्द्र कुमार ने ‘दूसरी जंग’ की भूमिका में लिखा है कि इसकी कविताएँ भी 1997 में लिखी गई थीं, जब कवि कक्षा दस का छात्र था, अर्थात् जब आयु 16 वर्ष के आस-पास थी। रविन्द्र कुमार अपनी किशोर-मन की इन कविताओं को क्यों महत्त्व देते हैं, इसे स्पष्ट करते हुए ‘भूमिका’ में कहते हैं कि इन कविताओं ने उन्हें गढ़ा है और लक्ष्य तक पहुँचाया है। जब ये कविताएँ लिखी गई थी, तब कवि को निश्चय ही इसकी प्रतीति नहीं रही होगी कि इनमें उनके वर्तमान और भविष्य का सत्य विद्यमान है, लेकिन भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने के बाद जब उन्होंने इन्हें पढ़ा होगा, तब उन्हें इन कविताओं के भाव एवं विचार-पक्ष की शक्ति का अनुभव हुआ होगा और उन्होंने पाया होगा कि वह आज जो कुछ है तथा आज जो कुछ सोचते हैं या करना चाहते हैं, वह इन कविताओं में साफ-साफ सुनाई पड़ता है। यह अद्भुत है, पर सत्य भी होता है कि 16 वर्ष की आयु में कवि अपने भविष्य को ही देख रहा था और जिस रास्ते पर उसे जाना था और जो जीवन, समाज एवं देश के महत्त्वपूर्ण सवाल थे, वह उन्हीं में डूबा नजर आ रहा था। जिस व्यक्तित्व की बुनियाद किशोरावस्था में पड़ गई हो, तब उसका बना महल बुनियाद के अनुरूप ही हो सकता था।
मैं ‘दूसरी जंग’ कविता-संग्रह के लिए श्री रविन्द्र कुमार को बधाई देता हूँ। जीवन एक जंग है और प्रशासनिक अधिकारी के लिए तो रोज ही जंग होती है और नीर-क्षीर-विवेक से इस जंग को जीतना होता हैै। सत्य मार्ग के पथिकों का मार्ग कंटकों से भरा होता है, काँटे कभी गहरे चुभते भी हैं और आहत भी करते हैं, परंतु सत्यमार्गी अपना मार्ग नहीं छोड़ता और यदि वह लोक.जीवन के मंगल का मार्ग है तो उसकी सत्यनिष्ठा और भी सबल हो जाती है। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि कवि के जीवन में ऐसा ही हो।
                                                                                                                                                                                                                                  -कमल किशोर गोयनका

Book  “Many Everests” Release by Cabinet Secretary of India book-relase

Dignitaries on the dais releasing the book (L-R):
1. Ms Diksha, IFS 2013, Author’s wife
2. Sri BK Prasad, IAS 1983, Secretary, GOI
3. Sri AK Manocha, CMD IRCTC
4. Sri Sanjay Kothari, IAS 1978, Ex-Secretary DoPT, GOI and present chairman , PESB
5. Sri Pradeep k Sinha , IAS 1977, Cabinet Secretary, GOI
6. Sri Ravindra Kumar, IAS 2011, Author
7. Sri PK Jha, IAS 1982 , Secreatry GOI
8. Sri BK Dubey, IAS 1982, Secretary GOI
9. Shashi Shekhar , IAS 1981, Secretary GOI